Tuesday, October 19, 2010

Durga Pooja par munni hui badnam


On the eve of first navaratre (the 9 days' fasting period), the bars are flooded with people. Pubs have long queues in front of them. Tables in the restaurant are filled with plates full of chicken. It's an adjustment with the Goddess that they would be religious and not touch meat and alcohol for her sake but only for nine days.

On the day of Durga Puja, there is a big idol of Durga Mata in the tent. In the morning, 6-7 people are playing cards in the same pandaal (tent). In the evening, people take up sticks to perform the traditional dance Dandiya. The sound system blares Shakira's 'Waka waka'. Why not? Shakira is about to perform the role of Goddess 'Kali' in an upcoming movie. As if 'Waka waka' were not enough, the next song in queue is 'Munni badnam hui darling tere liye'.

Durga maa is wondering whether she lost the way. She was invited to a bhajan-keertan (worship), but happened to reach a roadclub instead. She stands gazing at them, standing in a corner, looking so confused.

जाने भी दो यार (ग़ज़ल)


बुझे हुए खुर्शीदों की बात रहने दो
कुछ देर और अभी रात रहने दो
(खुर्शीद - सूरज)

जाना है तो चले जाना कल हमें छोड़कर
एक दिन तो और अभी साथ रहने दो

शबे-बादा है आज पीकर झूमेंगे रिन्दा
बयानी-ए-दर्दे-दिलो-जज़्बात रहने दो
(शबे-बादा - शराब पीने की रात; रिन्दा - शराबी; बयानी - बताना)

गुज़र गई उम्र  और कुछ ना पाया
कुछ दिन और अभी ए हयात रहने दो
(हयात - ज़िन्दगी)

मैं जितना चला, उफक उतना ही दूर गया 
अब क्या जीत और क्या मात रहने दो
(उफक - horizon)

मस्जिद में पिला देगा ज़ाहिद को पैमाना
गुलफाम को क़ाफिरों में शामिलात रहने दो
(ज़ाहिद - religious teacher; क़ाफ़िर - athiest)










Tuesday, October 12, 2010

ऐसा नहीं कि तुम्हारी याद नहीं आती (कविता)
















ऐसा नहीं
कि तुम्हारी याद नहीं आती
याद आते हो तुम

वो शुरुआती दिनों में
मेरे बाहर जाते हुए
तुम्हारी बालकनी में से देखना
मुझे गली से गुजरते हुए
हाँ, अब भी कभी कभी
पीछे मुड़कर देखता हूँ यूँ ही
लेकिन कुछ नहीं दिखता
उस खाली बालकनी में
खिड़की के पर्दों के सिवा


ऐसा नहीं
कि तुम्हारी याद नहीं आती
तुम्हारा अपना खाना छोड़ के
मुझे खाते हुए देखने लग जाना
कितने प्यार से
हाँ, अब भी कभी कभी
अचानक रुक जाता हूँ खाते हुए
मुझे निहारती उस निगाह  को
पकड़ने की कोशिश में
पर नज़रें चुराना नहीं आता
मूक दीवारों को
वे बस घूरती रहती हैं
मेरे सामने रखी खाली कुर्सियों को


हाँ, जी में आता है
तुम्हें फ़ोन करने का
फिर से ये सुनने का
कि तुम मेरे ही बारे में
सोच रहे थे


फ़ोन उठाता हूँ लेकिन
रुक जाता हूँ ये सोचकर कि
कहीं फिर से वही
ख़ामोशी ना छा जाए
कहीं ये सुनहरी यादें भी
धूमिल ना हो जाए
उसी तरह जैसे
उन आखिरी दिनों में
हम सामने हो कर भी
एक-दूसरे को
दिखते नहीं थे


वो कहते हैं कि
इस गोल दुनिया में
बड़े झोल हैं
जो पास है, वो कुछ नहीं
जो ना मिले, अनमोल है
याद है? हम भी कभी
किसी गुजरे ज़माने में
एक-दूसरे के ख्वाबों में
बसते थे
फिर धीरे-धीरे
अपना सब कुछ दे कर
बहुत करीब आ कर 
हम बेक़दर 
होने लगे थे 
प्यार का होना ही 
बस काफ़ी ना रहा 
ख्वाब अपनी रंगत 
खोने लगे थे 


कहूँ कि ना कहूँ पर शायद 
हम एक-दूसरे से 
ऊब गए थे 
हमारे बीच के वो तार
जिनमें ज़ंग लग गया था
हर रोज़ की खींच-तान में
टूट गए थे


हाँ, जी चाहता है कि
कोई गाना गुनगुनाऊँ
तुम्हारे कंधे पर सर रख के
फिर जाने कब सो जाऊँ
तुमसे बातें करते करते


पर इतना थक गया हूँ
कि फ़ोन कर के
फिर से और खींच-तान
करने की हिम्मत नहीं
उस गुज़रे ज़माने के
मुरझाए फूलों को खिलाना
अब मेरे बस में नहीं


इसलिए फ़ोन वापस रख देता हूँ
यह सोच कर कि
जिसे याद करता हूँ
वो कोई और ही है
तुम्हारे साथ रहने के बजाए 
तुम्हारी सुनहरी यादों के साथ जीना
अब ज्यादा आसान और बेहतर है