Monday, September 26, 2011

The daughter of an alcoholic



I have tried several times to convince her that it is not her fault, but Sonia is stubborn. She doesn't listen to me. All that she mumbles in return for my string of words is -

"Whose fault is it, if not mine?"

There is no definite answer to that question. Probably it had to happen. But that would be a harsh thing to say in front of her.

Even though I tell Sonia that it is foolish of her to blame herself - she didn't know that her sulking a bit, which is not rare of her, could lead to something so unexpected - yet, speaking frankly, I understand her position. I myself am not left untouched by traces of guilt. After all, it was my birthday treat when it all started.

Thursday, September 15, 2011

सूखते तालाब

                                                  photo by Vijeta Dahiya

बहुत अच्छा तैराक था वो. राष्ट्रीय जूनियर प्रतिस्पर्धा में स्वर्ण पदक हासिल कर चुका था. ओलिम्पिक खेलों में छा जाने के ख्वाब को अपना इरादा बना चुका था. 

फिर जाने कहाँ से एक दिन उसके पिताजी के एक भूले-बिसरे दोस्त घर आ पहुँचे जिनका शौक़ था लोगों का हाथ देख कर उनका भविष्य बताना. उसका इस सब में विश्वास नहीं था, पर माँ मुफ्त का मौका कैसे हाथ से जाने देती. घर के सभी लोगों का पोथी-पथरा निकल जाने के बाद उसका भी नंबर लग गया. पंडित जी ने कहा कि लड़का शोहरत कमाएगा, घर में पैसा लाएगा, सुन्दर बीवी होगी, और विदेश घूम आएगा, लेकिन....

इसकी ज़िन्दगी को पानी से खतरा है.

पंडित जी ने तो अपना शौक पूरा किया और पानी पीकर चले गए लेकिन उसके धूप में चमकते तालाबों में आग लग गई. वह रो-रो कर थक गया कि बकवास है यह ज्योतिषी की बानी, यह फ़र्ज़ी भविष्यवाणी. मौत जब आनी है, आएगी. ना किसी के बुलाने से आने वाली और ना किसी के रोकने से वापस जाएगी. पर वे नहीं माने. 

सच हो या झूठ पर आखिर खतरा क्यूँ मोल लें. किसी प्रतिस्पर्धा में लाइफ जैकेट या ट्यूब के साथ तैरने की अनुमति होती, कोई खतरा ना होता तो बात अलग थी. एक बार को फिर भी सोच सकते थे, पर यूँ ज़िन्दगी दाँव पर लगाना.........बिल्कुल नहीं. 

शौक़ को जज़्बा बनाया जा सकता है, पर जज़्बे का शौक बनकर रह जाना संभव नहीं. वह आस-पास के स्विमिंग पूल में कभी-कभी चोरी-छुपे तैर कर अपने मन को बहला लेता. कौनसा घरवालों ने उस में कैमरे फिट कर रखे थे. लेकिन उसके दिल के टूटे ख्वाब उसके सीने में यूँ चुभते कि इस क़दर गोते मार कर खुश हो लेने से उसे अपराध बोध महसूस होने लगा. और फिर उसने हरेक तालाब के किनारे से किनारा कर लिया. 

उदासी उसके दिल में यूँ घर कर गयी कि सालों बाद यह जज़्बा, यह ख्वाब, यह किस्सा तो धुंधला हो गया, लेकिन उदासी तब भी यूँ ही दिल को दीमक की तरह खाती रही. 

दाँतों का डॉक्टर बन गया, 
कार खरीदी, फ्लैट किश्तों पर ले लिया, 
शादी हो गई, 
बच्चे हुए, उनको पढाया, 
एक कंप्यूटर इंजिनीयर बन गया, दूसरा वकील. 
फिर उनकी शादी कर दी. 
पहले की बहू इंजिनीयर थी, दूसरे की अध्यापिका. 
बड़ा लड़का अलग हो गया. उसको एक बेटी पैदा हुई, जो अभी कुछ दिन पहले स्कूल जाने लगी थी 
दूसरा लड़का और उसकी बीवी अभी उनके साथ रहते थे. 
माँ-बाप भी साथ थे. 
उसकी उम्र हो चुकी थी पचपन. 

फिर जाने कहाँ से उसके पिताजी के भूले-बिसरे दोस्त पंडित जी एक अरसे बाद उस दिन अचानक आ धमके. उसके बेटा-बहू उसकी पत्नी को साथ ले कर कहीं बाहर गए हुए थे. उसके माँ-बाप, पंडित जी और वह कमरे में बैठ कर बातें करने लगे. बीच में पंडित जी का आना-जाना लगा रहता था, पर इस बार करीब सात-आठ साल बाद उनका आना हुआ था. बताने लगे कि अपने बेटे के पास लंदन रहने चले गए थे. जाने क्यूँ आज उन्हें देखते ही उसके दिमाग में एक बिजली कौंध गई. वह दृश्य उसकी आँखों के सामने घूमने लगा. जैसे कि समय ने करवट ली हो और वे लोग फिर से उस दिन पर आ पहुँचे हो. माँ अभी उसे हाथ दिखाने के लिए कहेगी, वह मना करेगा, वह जिद करेंगी, उसे हाथ दिखाना पड़ेगा, और पंडित जी फिर से कहेंगे --------

पंडित जी बार-बार वही बात दोहराए जा रहे थे. और उसके पिताजी उसको घूरते हुए गर्दन हिलाने लगे. उसे तालाबों की याद हो आई. वह प्यासा हो गया. भविष्यवाणी उसके कानो में गूंजने लगी. मन किया कि कान बंद करे और ज़ोर से चिल्ला पड़े पर गले में चुभते काँटे उसकी आवाज़ को सोख चुके थे. उसकी माँ की आवाज़ से उसका मति भ्रम टूटा.

क्या हुआ? ठीक हो?

हाँ. हाँ. मैं....पानी ले आता हूँ. 

वह उन्हें बात करते हुए छोड़ कर अन्दर रसोई में चला गया. कुछ वक़्त बाद ही उन्हें अन्दर से कुछ गिरने की आवाजें आई. वे तीनो उठकर उधर भागे. वह ज़मीन पर औंधा गिरा हुआ छटपटा रहा था, सर से खून निकल रहा था और पास में फ्रिज से निकाली हुई पानी की बोतल से पानी बह रहा था. वह पलटा, और साँस जुटाने की कोशिश करते हुए बोला. 

पंडित....पूरी बात बताता...तैराकी क्यूँ....पानी पीना छोड़ देता...

वे उसे उठाने के लिए आगे बढे. वह खाँसने के लिए एक आखिरी बार छटपटाया, फिर गिर गया. बोतल से बहते हुए पानी के तालाब में.