Tuesday, January 17, 2012

मेरी माया और मैं

ऐ मेरी रूह-अफ्ज़ा
मेरी हमसाया
मेरे ख्वाबों की मल्लिका 
मेरी माया 

हवा के ज़रिये तुम्हारे नाम
भेज रहा हूँ एक पैगाम 
तुम्हारी याद में डूबा हुआ 
मैं तुम्हारा गुलफाम 

गुज़ारिश है कि अब नहीं मैं 
चाहता तुमसे मिलना 
ख्वाबों में रहकर ही मुझसे 
तुम बातें करती रहना 

इश्क़ में जब भी कभी
मैं ठोकर खाता हूँ 
मुस्काता हूँ तेरे नाम पर  
और संभल जाता हूँ 

सोचकर कि कहीं दूर है वो 
मेरी माया मुझे चाहती है 
जिसके लम्स से इत्र हुई फिज़ा 
मेरी साँसों में महकती है 

तुम अगर मुझे मिल गयी 
परवान चढ़ने लगा प्यार 
वही चार दिन की मुहब्बत  
और फिर हो गयी तक़रार

तब मैं किसका नाम लूँगा
कैसे संभल पाऊंगा 
हकीकत और ख्वाब दोनों से ही 
बेज़ार हो जाऊंगा 

इसलिए ऐ मेरी हमनफ़स
मिलने की तदबीर न करना 
तुम ख्वाबों में रहकर ही 
मुझसे बातें करती रहना  

उथला


मैं उड़ता रहता था 
बादलों में खिलखिलाते हुए
मेरे पंख कतर दिए गए 
कहा गया कि
ज़्यादा हवा में न उड़ा करो 
ज़मीन पर रहा करो 

ज़मीनी वास्तविकता ढूँढ़ते हुए
खुद को पाया मैंने
गहराइयों में डूबते हुए 
उन्होंने कहा 
हर वक़्त क्या सोचते हो 
बेवजह उदास रहते हो 

फिर मैं ज़मीन पर रेंगने लगा 
व्यवहारिकता सीखता गया  
आखिरकार एक दिन 
मेरे दिल और दिमाग को 
लकवा मार गया 
अब मैं एक जगह पर 
जम गया हूँ 
अब पापा भी खुश हैं मुझसे 

Tuesday, January 3, 2012

Believing

I preferred
believing in people
but
now I feel
believing in Santa claus
is a better option..

Damn the half-baked modernists!

Yes, the orthodox man disgusts me, but the half-baked modernist scares me more. The former could be easily evaded, but the latter's pretensions are truly jeopardous.