काँच के शहरों में ऐसा होता है
धूल में खेलते हुए गाँव में भी हुआ है
हो सकता है ऐसा बाँसुरी बजाते हुए पहाड़ों में,
और चाँदनी में नहाते हुए रेगिस्तान में भी
जंगली वन में भले ही मुश्किल हो ऐसा होना
पर नामुमकिन बिल्कुल नहीं
लेकिन बस्तियाँ जो खुद विशेषण हैं
एक अलग तरह की उमस
उस बस्तियों के जैसे अँधेरे का
अनमनी शाम और सवेरे का
उन बस्तियों में ना कभी यह हुआ
और होने के आसार भी नहीं
कैसे कहूँ
कहूँ ऐसे कि बस्तियों में राजकुमार पैदा नहीं होते
तो यह भगवान पर पक्षपात का आरोप होगा
और कहूँ कि बस्तियों में पैदा होने वाले
कभी राजकुमार नहीं बन सकते
तो हमारे संवैधानिक अवसर की समानता पर
एक सवालिया निशान होगा
अगर सवाल के जवाब के लिए तहक़ीक़ात हुई
तो सरकारी स्कूल का प्रिंसिपल और कोई मास्टर
काजू बर्फी के शौक़ीन स्कूल इंस्पैक्टर और डायरेक्टर
मंत्री, एम एल ए, काउंसलर,
कोई एन.जी.ओ. वाला, कोई ड्रग डीलर
मुफ्त के छोले कुल्चे खाने वाला पुलिसिया
तो कोई प्रॉपर्टी डीलर और बिल्डर
मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, कारखाने वाला बाबू
जिसे सस्ते मजदूर चाहिए
और ना जाने कौन कौन पूछताछ के लिए बुलाए जाएँगे
और दुविधा यह है कि फिर पूछताछ करेगा कौन
झमेला छोड़िए और बस यूँ कहिए
इन बस्ती वालों ने तो बस
बस्ती का माहौल ख़राब कर रखा है
ये लोग ही जाने कैसे हैं जो
राजकुमारों को पसंद नहीं करते