Saturday, December 16, 2017

प्यार का गणित (Pyaar ka ganit)




















तंग हालात थे
घर में दाल बनी थी
मुझे दो रोटी की भूख थी
और दो रोटी की तुम्हें भी
रोटियाँ केवल तीन थी
हम इकठ्ठे खाने बैठे
और हम दोनों का पेट भर गया

फिर दिन फिरे
घर में शाही पनीर बना
उस दिन भी हम दोनों को
दो दो रोटी की भूख थी
हम इकट्ठे खाने बैठे
हम ने पाँच रोटियाँ खाई
और मन फिर भी भरा नहीं

बात दाल या शाही पनीर की नहीं
यह प्यार का गणित है
जहाँ दो जमा दो जरूरत में तीन 
और लुत्फ़ में पाँच हो जाता है

(dedicated to my wife on our anniversary)

Tuesday, December 12, 2017

खिड़कियाँ (Khidkiyaan)



 
फ़र्ज़ करो कि
तुम्हारा दिलो-दिमाग़ एक घर है
हटा दिए जिसमें से
खिड़की दरवाज़ें रौशनदान सभी
अब यहाँ उल्लू उड़ते हैं
चमगादड़ मँडराते हैं 
मकड़ियों ने बुने हैं जाले 
मच्छरों ने अंडे दिए हैं
कोनों में लगी है फफूंद 
पनपने लगी हैं बीमारियाँ
उमस की बदबू फैली है
कीचड़ की छींटे उठती हैं
जब भटकते हो
पटकते हुए माथा दीवारों पर
काँपते हाथ बने हैं हथियार 
सन्नाटे को तोड़ती हैं सिर्फ गालियाँ
कुछ नहीं सूझता 
कुछ नहीं देता दिखाई
हो गई है बिनाई
अँधेरे की गिरफ़्त में  
शम्अ जलाओ तो धुँआ भर जाएगा
यह दिलो-दिमाग़ एक मक़बरा है
जिसमें तुमने खुद को 
ज़िंदा चिनवा दिया है

जल्दी करो 
मारो हथौड़ा दीवार पर 
और एक रौशनदान बनाओ  
जहाँ से आती हुई धूप
गरमाइश दे सके जमे हुए फ़र्श को
रौशनी फ़र्क़ कर सके
शरबत और ज़हर में
काले और सफ़ेद में आँखों को 
ग़लतफहमी ना हो
एक खिड़की लगाओ जिसकी सिल पर
कोई चिड़िया बैठकर गीत गाए
जिसके छज्जे पर टपकती हुई
बारिश की बूँदें कोई संगीत सुनाए
एक दरवाज़ा लगाओ जहाँ से
तुम घूमने के लिए बाहर निकलो
कभी कोई कवि अंदर सके
इस आने जाने में
पुराना कबाड़ निकाला जाए बाहर  
नया सामान सजाया जा सके
गमलों में उग सकें नए पौधे
बसंती हवा कोने कोने को महका जाए
यह दिलो-दिमाग एक महल है
जिसमें तुमने खुद को
सिंहासन पर बिठाया है

अंधी दीवारों वाले मक़बरे में रहोगे
या रहोगे हवादार रौशन महल में
यह फैसला तुम्हारा है

Thursday, June 15, 2017

बदहवासी (badhawasi) - ek ghazal




















तर्क से समझकर कोई किसी की नहीं मानता
सबने माना तो जरूर बेवकूफ़ बनाए जा रहे हैं

बनाएँगे घर चाँद पर, वहाँ मिल गया है पानी, 
यहाँ पड़ोस के घर में आग लगाए जा रहे हैं   

बिना मतलब के कुछ नहीं मतलबी दुनिया में
हाँ, ज़िन्दगी सब बेमतलब बिताए जा रहे हैं

हर छोटी बात में बहुत दिमाग़ लगाते हैं लोग
बस अंधविश्वास को यूँ ही निभाए जा रहे हैं

रोते हुए बच्चों में उन्हें भगवान नहीं दिखता
और वे पत्थर पर दूध-पानी चढ़ाए जा रहे हैं

किसी को किसी से बात करने का वक़्त नहीं  
पर whatsapp पर मैसेज लगातार आए जा रहे हैं

तू उनकी बदहवासी पर हँसता है 'गुलफ़ाम'
वे तुझे पागल जानकर मुस्काए जा रहे हैं