(c) Vijeta Dahiya |
तुम क्या करते हो
प्रश्न अनवरत बना रहा
शुरूआती वर्षों में तुमने कहा
कि अमुक स्कूल या कॉलेज में पढता हूँ
और फिर अगले वर्षों में बात रही
कि अमुक संस्थान में नौकरी करता हूँ
या खुद का कोई काम धंधा जमा लिया है
या किसी की पत्नी और बच्चे की माँ बनकर
मैंने घर संभाल लिया है
शायद बीच में कभी ऐसा भी हुआ है
कि तुम केवल तैयारी कर रहे थे
किसी कॉलेज में दाखिले
किसी नौकरी या शादी के लिए
नाउम्मीदी की सूरत में भी अकारण
तुम ओढ़े रहे आवरण
इस तैयारी का
और करते रहे पालन
औरों की या खुद की बनाई हुई
एक समय-सारणी का
पर क्या तुम रुके कभी किसी चौराहे पर
दोराहा एक अलग बात है
किस ओर का सवालिया निशान लिए हुए
जैसे आ जाए दोराहा नदी की मंझधार में
और किश्ती चलती रहे अनवरत
इस धार में या उस धार में
पर चौराहे पर मुमकिन होता है रुकना
कुछ ना करना
कुछ करने का नाटक भी ना करना
बस सोचना कि वाकई क्या करना है
या गलत राह पर भटक आए लोगों के लिए
दिशा बदलना या पीछे मुड़ना
चौराहे के पेड़ से गिरते हैं सेब
न्यूटन के सर पर
चौराहे पर भाषण देते हैं लेनिन
उमड़ती है जोश की लहर
चौराहे पर घूमते हैं स्टीव जॉब्स
कॉलेज बीच में छोड़कर
चौराहे से निकलते हैं सिद्धार्थ
बुद्ध होने की राह पर
चौराहे पर कबीर जैसे अनपढ़ जुलाहे
सत्संग करवाया करते हैं
चौराहे पर नफा नुक्सान छोड़कर दिमाग़
दिल की आवाज़ सुना करते हैं
चौराहे पर कविता सुनकर बहकने से
मज़लूम सर उठाया करते हैं
चौराहे पर ही क़ैस लैला के प्यार में
मजनूँ बन जाया करते हैं
चौराहे पर टूटते हैं तारे
चौराहे पर बनते हैं सितारे
चौराहे पर होती है हरेक क्रांति
कतारों में तो सिर्फ धक्के खाए जाते हैं
तुम धक्के खाते रहे हो
अपने पर्यावरण के थोपे हुए विचारों को
तुम अपनी पसंद बताते रहे हो
खुद को सडकों पर दौड़ाते रहे हो
और फिर हाँफते हुए
गले में कैमरा लटकाए हुए
तुम दो दिन चले गए पहाड़ों पर
दो घडी साँस लेने को
और वापस आकर फिर भागने लगे
रुके हुए रास्तों पर
हाँ, चौराहे पर रुकना
पहाड़ों पर रुकने जैसा सरल नहीं
चौराहे पर खड़े होने पर
तुम्हारी आज़ादी को लोग कहेंगे आवारगी
जाल बुनता जाएगा अस्थिरता का
हंसती निगाहें पूछेंगी क्या करते हो
बोध कराएँगी तुम्हें नग्नता का
चलते हुए दिमाग को अचानक रुकने पर
एहसास होगा एक रिक्तता का
क्योंकि सोचना-विचारना, ज़िन्दगी खंगालना
पर्याय है आजकल व्यर्थता का
लेकिन फिर भी
चौराहे पर कुछ वक़्त रुक जाना
क्योंकि अंतर्मन में हो या दुनिया में
चौराहे पर ही होती है हरेक क्रांति