बूझो तो जानें
या सिर्फ मिथ्या मानें
उस चीज़ को
जो है फूल की गंध जैसी
पानी में उठती तरंग जैसी
क्या है वह
जो किसी पुराने दोस्त की तरह
पीछे से दबे पाँव आती है
और ढक लेती है तुम्हारी आँखें
अपनी हथेलियों से
जिसे तुम छू नहीं पाते
और वह तुम्हें छू कर चली जाती है
एकाएक
कभी दफ्तर में अकेले होने पर
किसे ढूँढती हैं तुम्हारी आँखें खिड़की के बाहर
क्यों स्तब्ध हो जाते हो तुम
किसी झील के किनारे खड़े हुए
हवा के एक झोंके से
तुम्हारी आँख में पानी भर आता है
दिल में एक हूक सी उठती है
तुम मुस्कुराने लगते हो
गलती से
क्या होता है तुम्हारे साथ ऐसा
या ऐसा होना बंद हो गया है
कि औरों के साथ तुम्हारा मुँह
बोलने से बंद नहीं होता
और अकेले कहीं भी जाने या कुछ भी करने में
तुम्हें डर लगता है
और अकेले कहीं जाना भी पड़ जाए
बस में, मेट्रो में
तो अपने दिमाग़ को खूब उलझाए रखते हो तुम
मोबाइल के किसी गेम में या अखबार में
चुगलियों में, रोज़ की उलझनों में
फायदे-नुक्सान में
आगे के किसी प्लान में
फिर भी कभी कभी चोरी-छिपे
भीड़ के बीच में से
वह आ पहुँचे तुम तक पीछे से
और ढक ले तुम्हारी आँखें
अपनी हथेलियों से
तो खुद को झटकते हो तुम
कहते हो कि कुछ भी तो नहीं
कि तुम्हें याद तो है ही नहीं कि क्या है
तुम साथ ही भूल भी गए हो कहीं
कि कुछ था
जो दिखता नहीं था,
जिसे छू नहीं सकते थे,
एक आवाज़ जो सुनाई नहीं देती थी
पर तुम्हें कहीं बुलाती थी
जाओगे वहाँ
ढूँढ पाओगे उसे
या हर बात को अब कहोगे
मिथ्या और बकवास
या सिर्फ मिथ्या मानें
उस चीज़ को
जो है फूल की गंध जैसी
पानी में उठती तरंग जैसी
क्या है वह
जो किसी पुराने दोस्त की तरह
पीछे से दबे पाँव आती है
और ढक लेती है तुम्हारी आँखें
अपनी हथेलियों से
जिसे तुम छू नहीं पाते
और वह तुम्हें छू कर चली जाती है
एकाएक
कभी दफ्तर में अकेले होने पर
किसे ढूँढती हैं तुम्हारी आँखें खिड़की के बाहर
क्यों स्तब्ध हो जाते हो तुम
किसी झील के किनारे खड़े हुए
हवा के एक झोंके से
तुम्हारी आँख में पानी भर आता है
दिल में एक हूक सी उठती है
तुम मुस्कुराने लगते हो
गलती से
क्या होता है तुम्हारे साथ ऐसा
या ऐसा होना बंद हो गया है
कि औरों के साथ तुम्हारा मुँह
बोलने से बंद नहीं होता
और अकेले कहीं भी जाने या कुछ भी करने में
तुम्हें डर लगता है
और अकेले कहीं जाना भी पड़ जाए
बस में, मेट्रो में
तो अपने दिमाग़ को खूब उलझाए रखते हो तुम
मोबाइल के किसी गेम में या अखबार में
चुगलियों में, रोज़ की उलझनों में
फायदे-नुक्सान में
आगे के किसी प्लान में
फिर भी कभी कभी चोरी-छिपे
भीड़ के बीच में से
वह आ पहुँचे तुम तक पीछे से
और ढक ले तुम्हारी आँखें
अपनी हथेलियों से
तो खुद को झटकते हो तुम
कहते हो कि कुछ भी तो नहीं
कि तुम्हें याद तो है ही नहीं कि क्या है
तुम साथ ही भूल भी गए हो कहीं
कि कुछ था
जो दिखता नहीं था,
जिसे छू नहीं सकते थे,
एक आवाज़ जो सुनाई नहीं देती थी
पर तुम्हें कहीं बुलाती थी
जाओगे वहाँ
ढूँढ पाओगे उसे
या हर बात को अब कहोगे
मिथ्या और बकवास
Kaise wakt ne muje apna ghulam bna Diya, ye kavita muje btlati h. Kuch purane dosto Ki yadoon ke sahare e ghulfam ye kavita muje jeena sikhati h.
ReplyDeleteWell I read "Dhundh" and it is an amazing piece
ReplyDelete1. Because it's aesthetically so rich that one can actually experience what perhaps you did.
2. Because the break is really well timed to come out and realise.
3. It might prove as a real awakening for some. :)
And the funny part is my phone translates it in English and you have another level altogether😝
Well I read "Dhundh" and it is an amazing piece
ReplyDelete1. Because it's aesthetically so rich that one can actually experience what perhaps you did.
2. Because the break is really well timed to come out and realise.
3. It might prove as a real awakening for some. :)
And the funny part is my phone translates it in English and you have another level altogether😝