Tuesday, January 17, 2012

उथला


मैं उड़ता रहता था 
बादलों में खिलखिलाते हुए
मेरे पंख कतर दिए गए 
कहा गया कि
ज़्यादा हवा में न उड़ा करो 
ज़मीन पर रहा करो 

ज़मीनी वास्तविकता ढूँढ़ते हुए
खुद को पाया मैंने
गहराइयों में डूबते हुए 
उन्होंने कहा 
हर वक़्त क्या सोचते हो 
बेवजह उदास रहते हो 

फिर मैं ज़मीन पर रेंगने लगा 
व्यवहारिकता सीखता गया  
आखिरकार एक दिन 
मेरे दिल और दिमाग को 
लकवा मार गया 
अब मैं एक जगह पर 
जम गया हूँ 
अब पापा भी खुश हैं मुझसे 

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