ऐ मेरी रूह-अफ्ज़ा
मेरी हमसाया
मेरे ख्वाबों की मल्लिका
मेरी माया
हवा के ज़रिये तुम्हारे नाम
भेज रहा हूँ एक पैगाम
तुम्हारी याद में डूबा हुआ
मैं तुम्हारा गुलफाम
गुज़ारिश है कि अब नहीं मैं
चाहता तुमसे मिलना
ख्वाबों में रहकर ही मुझसे
तुम बातें करती रहना
इश्क़ में जब भी कभी
मैं ठोकर खाता हूँ
मुस्काता हूँ तेरे नाम पर
और संभल जाता हूँ
सोचकर कि कहीं दूर है वो
मेरी माया मुझे चाहती है
जिसके लम्स से इत्र हुई फिज़ा
मेरी साँसों में महकती है
तुम अगर मुझे मिल गयी
परवान चढ़ने लगा प्यार
वही चार दिन की मुहब्बत
और फिर हो गयी तक़रार
तब मैं किसका नाम लूँगा
कैसे संभल पाऊंगा
हकीकत और ख्वाब दोनों से ही
बेज़ार हो जाऊंगा
इसलिए ऐ मेरी हमनफ़स
मिलने की तदबीर न करना
तुम ख्वाबों में रहकर ही
मुझसे बातें करती रहना
hey...wats the progress with the job ? result aya?
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