'झूठ बोल' की बाज़ी चल रही थी. मुकेश ने दो दुग्गी डाली. रामनिवास की एक दुग्गी, एक दुग्गी रमेश की भी. ऊपर से मुकेश की तीन और दुग्गी. पत्ते खत्म.
"झूठ बोल रहा है पक्का. चैक कर." रमेश ने रामनिवास को उकसाया.
"ये क्यूँ करे? ये पास बोल देगा, तू खुद कर ले चैक. इसे क्यूँ फँसा रहा है?"
"हाँ, मैं तो करूँगा ही. अबे, या तो चैक कर ले या पास कर दे मुझे."
रामनिवास ने डरते डरते हाथ बढाया. पहला पत्ता दुग्गी, दूसरा भी दुग्गी, और ये तीसरी दुग्गी. मुकेश ठहाका लगा कर हँसा.
"और मान ले इसकी. उठा अब सारे के सारे पत्ते."
ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय, ॐ ॐ ॐ ॐ नमः शिवाय.
'नीलम. कॉल हो रही'.
"भाईसाब, आपका फ़ोन बज रहा है." सोनू ने साथ वाले कमरे से आवाज़ दी.
फ़ोन . नीलम का होगा. मुकेश ने चलते हुए कोशिश कर के अपने चेहरे से हँसी-ख़ुशी के सब भाव हटा कर माथे पर त्योरियाँ चढ़ा ली.
फ़ोन चार्जिंग से हटाते हुए हल्का सा खाँसा, आवाज़ में रूखापन लाने के लिए.
"हेल्लो."
"फ़ोन किया था?"
"हाँ. कहाँ चली गई थी?" उसने डाँट कर पूछा.
"गोबर डालने गयी थी."
"कुछ काम-धंधा करने देगी या नहीं?" धीरे धीरे उसकी आवाज़ में तेवर बढ़ने लगा.
"क्यूँ, मैंने क्या कर दिया."
"वो तो तुझे ज़्यादा पता होगा, रोला1 तो तू ही कर के आई है."
"ओहो, उन अनपूते ढेडों2 में से किसी ने फ़ोन किया होगा तुझे."
"गधे की बच्ची, ज़ुबान को काबू में कर ले अपनी...तेरे पंजे काट दूँगा."
"हाँ हाँ, तू मेरे ही पंजे काटेगा, और करेगा क्या. और किसी पर तो तेरी पार बसती3 नहीं."
"चुप रह जा तू, हरामजादी. एक पंखे के ऊपर इतना डरामा रच दिया. पंखा बाबू से ज़्यादा है क्या. वापस आने दे, तू जितने कहेगी, उतने पंखे फूँक दूँगा तेरे पास."
"मैंने कहा क्या है. पंखा पूरी सांझ, पूरी रात चलता रहा. सुबह श्यानी4 भिगोने घेर5 में गयी तब बंद किया है मैंने. वहीँ पर संजय और उसकी वो रांड थे. तभी बाबू आ गया. मैंने बस इतना कहा था की बाबू, जब सो कर उठो, जाने लगो तो पंखा बंद कर दिया करो. कहते ही संजय मेरे सिर पर गया, मौका ही देख रहा हो जैसे, और ऊपर से उस रांड की खट-पट. बता ऐसा क्या गलत कह दिया मैंने."
"आग लगने दे उस साले के पंखे को. खाली चल जाएगा, फूँक जाएगा तो कौनसी आफ़त आ जाएगी. बाबू अगर आ भी गया था... गाय भी गऊ माता होती है...एक दिन गाय के ऊपर चल गया, बता तुझे क्या फ़र्क पड़ गया."
"हाँ हाँ, मिल6 चल रही हैं ना तेरी तो. चलने दे, फूंकने दे मेरे लक्खे7. आज के बाद ले, कुछ भी कहूँ तो. और तेल छिड़क दूँगी उसके ऊपर."
"गधे की बच्ची, तू हो जा चुप. कहीं ना इतना फन्नाएगी8. यहाँ ये 3 दिन का और काम है, घर आते ही तेरी सोड़ सी भर दूँगा9. आई समझ में?"
"चुप होने को मैंने कहा क्या है? इतना ही तो कहा था कि बाबू - "
"तू कौन होती है कहने वाली. मैं लाया था ना पंखा खरीद के, अगर फूँक जाएगा, नया लाना होगा तो भी मुझे ही लाना है. तेरा क्या दाखिला10 है इस में?"
"मेरा दाखिला तो इस घर की किसी भी बात में नहीं है. मैं कल सुबह ही अपने घर जा रही हूँ."
"हाँ हाँ, जा ना फिर, जाती क्यूँ नहीं. गधे की बच्ची, धौंस क्या दिखा रही है. तू अगर अपने बाप की जाई है तो जरूर जाइये अब. और सुबह क्या होगा, तू ऐसा कर, अभी अपना सामान बाँध और निकल. ये याद रखियो कि सूख जाएगी, पर लेने नहीं आऊँगा इस बार. बहुत सह लिया है. मुझे दो टीकड़11 खाने है, कहीं और खा लूँगा."
"हम्म, जरूर मिलेंगे तुझे मांडे12 मेरे पीछे से."
"हाँ, बस तू ही है ना जिसे - "
"बाबू के खाने का टाइम हो गया. माँ बुला रही है. रखती हूँ अभी."
"अच्छा."
कपडे इस्त्री करते हुए भी सोनू के कान उधर ही थे. पूरी बात तो सुन ही चूका था, फिर भी इसे अपना नैतिक फ़र्ज़ मान कर पूछ लिया, "क्या बात हो गयी भाईसाब? ज़्यादा ही परेशान लग रहे हो."
"क्या बताऊँ यार, बस यही घर के रोले. अब एक ही घर में रहते हैं, तो सब से बना कर तो रखनी पड़ेगी." मुकेश फ़ोन के कीपैड की नीचे वाली कंट्रोल की दबाते हुए बोला. संजय 9218059507
"हाँ संजय, तुने कुछ और बात बताई, तेरी भाभी कुछ और कह रही है....उसने यूँ थोड़े ना कहा था कि पंखा मत चलाओ....इन दो बातों में तो बहुत फ़र्क है...ना ना ना, ठीक बात नहीं है भाई ये... खैर, मैंने समझा दिया है उसको.....अरे कह रहा हूँ, करड़ी13 कर दी है, आगे से वो अपना मुंह भी नहीं खोलेगी, और बता ; पर तू अपनी इस को थोड़ा काबू में रखा कर.. ना ना ना, नहीं वो कोई बात नहीं होती.....हाँ, ग़लती तो थी उसकी, इस तरीके से बोलना, मैंने खुरका14 भी दी है बहुत, पर बात गलत नहीं थी उसकी....तू उस से कैसा ही मत बोल, ना अच्छा, ना बुरा, बात खत्म, उसकी जिम्मेवारी मेरी है.... हम्म हम्म, मैंने बता दिया ना इलाज..... हाँ, कोई नहीं, चल छोड़, हो जाती है बात, अब दोबारा कोई रोला नहीं होना चाहिए, ठीक?....ठीक है, मुझे भी बुला रहे हैं, रखता हूँ फ़ोन अभी, शांति से रहना अब..."
सोनू कुछ कहना कहना चाहता था पर समझ नहीं आया कि किस तरफ की बात कहे. इसलिए फिर वही बात कह दी. "क्या बात हो गई भाईसाब? इतना गुस्सा मत खाया करो."
असल में मुकेश को सीधे संपर्क सूची में जा कर संपर्क निकालना नहीं आता. वह फिर से कीपैड की नीचे वाली कंट्रोल की तेज़ी से दबाने लगा. नीलम 9813729506. हाथ रुका. उसने सोनू की तरफ देखा.
"सोनू, सच बात बता रहा हूँ. तेरी भाभी घणी सीधी है. घर का सारा काम करना, सबकी देखभाल, डांगर-ढोर, तुझे पता ही है कितना काम हो जाता है घर में, किसी से फालतू नहीं बोलना, और ऊपर से ये रोले सहने.... मुझे ही पता है कि वो कैसे गुज़ारा कर रही है अपना... इतनी सूधी औरत बस कहीं कहीं मिलेगी...."
कहते कहते उसका गला रूंध गया, आवाज़ भर्रा आई. उसने आँखें फेरी, कॉल का बटन दबाया.
"हेल्लो... हाँ, हो गया काम खत्म?"
फ़ोन कान से लगाए हुए वह कमरे से बाहर निकल गया. अपनी गधे की बच्ची से बात करने के लिए.
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1 rola - झगड़ा, शोर-शराबा 2. anpoote - childless ढेड़ - badmash; derogatory words, said in anger
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1 rola - झगड़ा, शोर-शराबा 2. anpoote - childless ढेड़ - badmash; derogatory words, said in anger
3. paar basna - to have control 4. shyani bhigona - to make fodder for cattle
5. gher - the other house in villages, where the cattle are kept, has a kitchen garden etc.
6. mill - mill, factory 7. mere lakhe - meri taraf se
8. phannaegi - to act smart 9. sod - quilt ; sod bhar dena - to beat someone fiercely
10. daakhila - interference, to have a say 11. टीकड़ - rough thick bread
12. maande - small, soft, thin bread 13. kardi kar dena - to tighten someone
14. khurka dena - to scold
It is hard to believe that Galib or particularly Urdu language evolved in Delhi . It is difficult to imagine people fighting at such vulgar levels even decades ago.
ReplyDeleteDo you think it has to do with the culture you set your story in. Even within India people donot stoop that low unless they always live on streets completely oblivious to civilization.
The female character seems to be from a village , someone who lives in a village ,has been to school , possess certificates claiming her education.
Do you think she has ever read a poem in language that she spoke; a movie, a song, a story . It seems that there were none , there had never been any , if there were ,they had never been recorded and converyed.....that lack of culture, language mar that silence , dignity that comes with the long history culture.there should be sign posts, landmarks that guide us in myriad of visible and particularly at times when we are not conscious
From anthropological view your character is blunt and real but I think you seem to be on my side even in your comment responding to my claim concerning Haryanavi culture , and now through your story . You will see that if you read your own answer to my comment .You were just supporting my argument by default
Can you imagine a Bengali girl speaking with such rawness....remember Raam that Punjabi woman with Persian looks....you heard her speak THAT DAY....she was angry but even in extreme anger she refrained from using certain words that your character segued with such abandon.
I think the world of your character is too limited restricted to ,'dood dahi ka khana' sort.....
(this was mean.....though)
I wrote a long comment, and then there was some problem with posting it, it disappeared. Can't write it again. So to put it short, I have no eagerness to defend Haryana or its culture. I fended off your criticism because I believed to that end. Can't write all that again now, you find out for yourself if you ever wish to. Neither those artists nor I am so eager of bringing it to light. I would defend UP's nautanki as much as Haryana's swang, aalah and raagni.
ReplyDeleteSRK's probing a passerby woman's bra for his misplaced 'keys' which he muffles with 'kiss' in a children's film seems crude to no one, it broke weekend business records, and 3 to 4 stars from all critics. Irfan Khan sings 'Dil tharki ho jae to pyaar do' and everyone is singing it with him. People say 'motherfucker, son-of-a-bitch, fuck fuck fuck' in every sentence and quite relish the taste of the English words; people fight like monkeys, abuse each other on National television in Big Boss and Roadies. and Your "civilized" people find it so entertaining that these shows get max TRPs, the films make max business; but whatever the "far from civilization" people might say, everything is crude, a gag, a joke.
It's strange if you believe that the general characteristics of any region can prevent anyone, that too an artist, from rising above it all. You contradicted your statement now. Artists are not haryanvi or Bengali. They are artists because they are not Haryanvi or Bengali, Hindus or Muslims, Indians or Germans, or of any caste, race etc.
Still, if you persist in your regionalism debate, then go to Kolkata. I have been there, and it's you who needs to go there to see Bengali women speak with much more rawness. It's not the division into regions, rather the classes that has mattered and continues to. How could you harbour such romanticized, far from reality views!
About your ignorant remark "Even within India people do not stoop so low....", well, it's not just the incident that I witnessed myself, but it happens in thousands or probably lakhs of households even today,and probably in each and every state, if you ever try to venture out.
The issue of the story is 'the curbing of a woman's individuality and the woman being made a scapegoat in the event of fights in a joint family. It's not the black-and-white perpetrator-victim depiction, rather the nexus where it follows from.' Yes, the world of my character is limited to that sort, but what does being "too" limited mean? Why don't you go out and rescue her, bring her to some new world then, if that living, in your view, qualifies only for death.
This is a LOVE STORY of ruffians ! Is she a victim ? Yeah...even I thought so..technically ...this is 'abuse'...harassment...what not..but will anyone spare the analysis and bother to see the underlying love ? Maybe I'm nuts ! :D
Delete-Maya
i dint understand d entire story...bt i like how u defended ur culture...i agree
Delete:D I am kind of removed from supposedly my (or my region's) culture, but anyhow, so it is...
DeleteMay be you are right.
ReplyDeleteKeep posting your thoughtful blogs
No Maya, you are absolutely right.. this is what it mainly is... How love survives even in chaotic surroundings what if only in a remote corner...
ReplyDeleteAnother thing which I would like to add is - the woman, for sure, is the obvious victim. But even the man is, in a way, suffers.
ReplyDeleteVijeta - again, superb job. I have been trying to write about stuff I see and get bothered about. But it gets smothered under my pillow as sobs or in my diary as a secluded entry. And that when I consider myself to be one of the 'LUCKY' ones. Keep up the good work!
ReplyDelete"Will anyone spare the analysis....." Sounds like agree with us.
ReplyDeleteThat is sheer desperation. MY WHOLE CONCERN WAS WITH THE STORY and not with rant.
Rachna - Thank you Ma'am so much for constantly encouraging me by reading the blog and sharing your reactions. I would really want you to bring out whatever you write, and share that LUCK with the world :)
ReplyDeleteAnonymous - of course I never doubted your concern, and that's why, was enthusiastic in patiently replying to it. Even if it were a little offbeat discussion about cultures, yet it was relevant in context with the backdrop and characters of the story. No such eagerness to defend the "Will anyone spare the analysis...." comment, but personally I feel that it was well-meant and mainly referred to my comment about the conclusion and her own analytic preceding lines "Is she a victim ? Yeah...even I thought so..technically ...this is 'abuse'...harassment...what not."
ReplyDeletewonderfulllllllll sir,though not agreee fully
ReplyDeletethank u priya for reading and comment, welcome to the blog... well, even i don't agree that this should happen, but unfortunately it happens...
ReplyDeleteVijeta - Here, an entry which finally came out after a lot of speculation - http://rachnabhardwaj.blogspot.in/2012/05/revival.html
ReplyDeleteu hav wrtn dis?
ReplyDeleteyeah certainly, or else I would mention the name of the author.. :)
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