भस्मासुर जब पैदा हुआ
वह भी मासूम रहा होगा
हरेक बच्चे की तरह
फिर एक दिन आई
दिमाग में उसके तुर्फाख्याली
कि मैं तो कुछ ख़ास हूँ
भगवान् ने भेजा है मुझे
कुछ अलग करने के लिए
यहाँ तक भी बात ठीक थी
वह सुलझा सकता था कोई रहस्य
एक वैज्ञानिक बनकर
चेतना, डार्क एनर्जी या डार्क मैटर
लेकिन विज्ञान उसे रास नहीं आई
या कहिए कि अध्यापिका
उसकी दिलचस्पी नहीं जगा पाई
तो क्या हुआ
बन जाना था उसे एक चित्रकार
अभिनेता, लेखक या फिर संगीतकार
जो पिरो सके एक युग की चेतना को
अपने तराने में
लेकिन अफ़सोस कि मिल ना सका
उसे सरस्वती का आशीर्वाद
तो क्या हुआ
था विकल्प इसके बाद
कि वह जीत लेता ओलिंपिक मैडल
या समाजसेवी बन जाता
उठा लेता जिम्मा पर्यावरण का
कहीं एक जंगल उगा देता
पर उससे कुछ भी करते ना बना
और उसकी मृगतृष्णा
उसे ले गई एक अंधे कुँए में
जहाँ छिन गई उसकी कोमलता
वह हो गया ब्रेनवॉश
पावर की भूख जगी
खो बैठा होश
और पावर उसे मिल गई
लेकिन अब करे क्या
सृजन करना कभी जाना नहीं
तो वह भस्म करने लगा
उठ नहीं सका उसका बौद्धिक स्तर
तो वह सब नीचे खींचने लगा
जो विज्ञान उसे समझ ना आई
उस पर डाल दी मिट्टी
छद्म-विज्ञान और अंधविश्वास की
कुछ चाटुकार चिरकुटों को
शैक्षिक संस्थानों की कमान दी
सिनेमा और साहित्य पर
वह प्रोपगैंडा मढ़ने लगा
समाजसेवी संस्थाओं पर
नकेल कसने लगा
नहीं उठी उसके दिमाग में
कोई तरंग मौलिक विचार की
तो उसके ही जैसे उसके पिट्ठुओं की भीड़
बुद्धिजीवियों पर लानतें भेजने लगी
नहीं उठी उसके मन में
कभी कोई तरंग प्यार की
तो उसके पिट्ठुओं की भीड़
समाज में नफरत का ज़हर घोलने लगी
इस तरह
वह बन गया भस्मासुर
Poem by Vijeta Dahiya
Thursday, August 22, 2024
भस्मासुर की आत्मकथा
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