Wednesday, January 26, 2011

अख्तरी

मोहब्बत के मिजाज़ बदल गए अख्तरी
उस झील के पानी में
जब भी डूबने को जी चाहा
खुद को घुटनों तक के
पानी में खड़ा पाया
उस झील के गंदले पानी में
डूबूँ तो कैसे
मय का असर भी
आजकल कुछ और ही है
खुमार होते ही सीने में
किसी की याद की चिंगारियां
आग पकड़ने लगती है
बात ना करूँ तो धधकती है
बात कर लूँ तो बुझ जाती है
तेरी आवाज़ के सिवा अख्तरी
अब डूबने को और बचा क्या है
तुम ऐसा करो कि आ जाओ
या मुझे बुला लो अपने पास
मैं तुम्हारे लिए
पान बना दिया करूँगा
तुम्हारी सिगरेट जला दिया करूँगा
और हाँ, तुम्हारे हारमोनियम की
धूल साफ़ कर दिया करूँगा मैं
तुम मुझे अपना पास बुला लो
क्योंकि तेरी आवाज़ के सिवा अख्तरी
अब डूबने को और बचा क्या है

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