एक गाँव में भूखे किसानों के पास ज़मीन नहीं थी. ज़मींदार अपनी मर्ज़ी से ज़मीन क्यूँ देने लगे. किसानों ने हथियार उठा लिए. गिने-चुने अमीरों को मार डाला. सरकार ने पुलिस भेजी. कई लाशें वापस आई. बात नहीं बनी तो सरकार ने उसी गाँव के लोगों को बन्दूक चलाना सिखाया, जिस में बहुत से बच्चे भी थे. महीने के 1500 रूपये दे कर बोला कि इन आतंकियों को मार गिराओ. सरकार ने कानून में भी परिवर्तन किया ताकि उनकी आवाजें अख़बार से दुनिया तक न पहुंचे, आदमी कहीं पर विद्रोह न कर सके, यूनियन न बना सके, पुलिस किसी को भी पकड़ सके. इस गाँव की मिट्टी में बहुत खनिज थे. चाहती तो सरकार खुद वहाँ mining करती, engineers को तनख्वाह पर रखती, वहाँ के लोगों को रोज़गार देती, मुनाफे में हिस्सा देती. पर कौन इतनी दिक्कत उठाए. उन्होंने वेदांता को बुलाया, साउथ कोरिया से POSCO आई, टाटा एस्सार को बुलाया. उन्हें liberalisation से छूट दी, कारखाने बनाने में मदद की. जंगल काटे, ज़मीन लूटी, किसी ने आवाज़ उठाई तो उसे अपने बुलडोज़र से रौंद दिया. पुलिस की अमीरों से पटने लगी. कौन उन्हें रोकने वाला था. औरतों की इज्ज़त लूटी गयी, आदिवासियों के सर काट दिए. अपने हक के लिए लड़ने वाले उन किसानो को पूरी दुनिए की नज़र में आतंकवादी करार कर दिया गया. naxalite militant का पर्यायवाची शब्द बन गया. एक अध्यापिका ने पुलिस की इन ज़्यादतियों के खिलाफ आवाज़ उठाई तो उसे पकड़ कर उसके गुप्त अंगों में पुलिस के SP ने पत्थर भर दिए. अदालत से गुहार लगायी तो अदालत ने सरकार को जवाब देने के लिए 1.5 महीने का समय दिया, जिस दौरान उसे उन्ही पुलिस वालों के पास रखा गया, बिजली के शॉक दिए गए.
activists ने आवाज़ उठाई, पीटीशन साइन किये. चर्चा हुई एक coffee शॉप में बैठ कर जहाँ की कॉफ़ी, गिलास, फ़र्नीचर सब कुछ उसी जंगल उसी खनिज का बना हुआ है. मैं कुछ नहीं कर सकता क्यूंकि मैं, एक पढ़ा-लिखा नौजवान, उन्ही में से किसी एक कंपनी में नौकरी करता हूँ. रुपया कमाता हूँ, 5 दिन ऑफिस, वीकेंड पर शराब, सिनेमा, पार्टी function, घूमना, फोटो खींचना, फेसबुक पर अपलोड करना, tag करना, "We had fun', उस को LIKE और कमेन्ट करने वालों को thank you dear :) बोलना, busy रहता हूँ. 5 दिन काम के बाद दिमाग को कूल करने के लिए मस्ती भी तो चाहिए. टीवी पर 'झलक दिखला जा' का नया सीज़न शुरू हुआ है, IPL के टूर्नामेंट.
वैसे मैं बहुत बड़ा देशभक्त हूँ, पाकिस्तान को गाली देता हूँ, पाकिस्तानियों का मजाक उड़ाने को ई-मेल पर चुटकले भेजता हूँ. मैं उस जंगल के खनिज से बनी हुई मेरी जरुरत का सामान इस्तेमाल करना कैसे बंद कर दूँ, विदेशी कंपनी के पिज्जा burger खाना कैसे छोड़ूं. कोक , पेप्सी, कुरकुरे, चिप्स, मैगी, पास्ता, बटर स्कोच मूस केक, और ज्यादा और ज्यादा, बनाते जाओ, मैं खाता जाऊंगा. कुछ वक़्त बाद अमेरिका जाना है, आदत तो होनी चाहिए. starbucks coffee के भारत में आने के इंतज़ार में हूँ, मज़ा आता है MORE, RELIANCE फ्रेश, FOOD COURTS, हुक्का पार्लर में, महंगी beer में, 5-स्टार होटल्स, AC restaurant जहाँ हम बर्थडे मनाते हैं, touch फ़ोन के नए हैण्डसेट, बड़ी बड़ी कार, वो भी आजकल एक काफी नहीं, कम से कम 2-3 कार, लैपटॉप, MALL में घूमना, किसानों की ज़मीन पर बने मेरे शानदार अपार्टमेन्ट में जो सरकार lucky draw में निकालती है, आदिवासियों के खून से सने हुए खनिज से बने इस हरेक सामान से ज़िन्दगी मस्त है. मैं कैसे इस्तेमाल करना छोड़ूं, क्यूँ छोड़ूं, रुपया कमाता हूँ खरीदता हूँ. वैसे भी कोई activist मुझे ये सब छोड़ने को नहीं कहता. अब गाँधी का non-cooperation movement थोड़े न हो रहा है, बल्कि सरकार खुद agriculture की subsidies हटा कर इस consumerist lifestyle और capitalistic system को promote कर रही है. मेरे अकेले के छोड़ने से क्या होगा. और वैसे भी अगर mining नहीं होगी, किसानो की ज़मीनें हड़प कर उनका रोज़गार नहीं छीना जाएगा तो flats कैसे बनेंगे, malls कैसे बनेंगे, देश की तरक्की कैसे होगी, GDP कैसे बढेगा. फिर भी बेचारे भूखे लोगों के लिए मैं महसूस करता हूँ. सरकार को गाली देता हूँ. मैं इस तरह के स्टेटस LIKE करता हूँ, चाहे तरुण की मौत हो या सोनी के ऊपर होते ज़ुल्म या आदिवासियों की कराहें, सब LIKE करता हूँ. कमेन्ट करता हूँ 'How sad!' इस से ज्यादा और क्या करूँ, खुद की ज़िन्दगी से फुर्सत नहीं है. ये सब सोच कर दिमाग ख़राब हो गया है, एक बीयर पी कर आता हूँ. Sorry सोनी....
@anonymous, had to delete the comment. thanks for your concern in increasing my blog's TRP, but I really don't want it, especially not by off-context poems laden with eroticism (erotica doesn't bother me, the poem was good enough actually, but the fact that it helps increase TRPs bothers me, dont need it), posted in comments on a post about a grave issue. This insensitivity is so insulting... why, i carved out a blog for you, remember? check your old mails. give these poems proper space where neither they nor the post loses its importance, I would love to read and comment...
ReplyDeleteI was just teasing you mr. writer Kumar regarding trp stuff
ReplyDeleteGo for a walk this evening and have two beers instead.